Last Updated on January 28, 2024 by krishisahara
तरबूज की खेती कब करें | हाइब्रिड तरबूज की खेती | ताइवान तरबूज की खेती | तरबूज की खेती का समय | तरबूज की खेती से कमाई | तरबूज की सबसे अच्छी किस्म | तरबूज की नर्सरी | tarbuj ki kheti kaise hoti hai | तरबूज की खेती कहां होती है | तरबूज की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है |
मुनाफे और कम समय में तैयार होने वाली फसलो में शामिल तरबूज की खेती जिसकी मांग बाजार में अच्छी होती है देश के मैदानी क्षेत्रों में बहुतया से होती है तरबूज की खेती, जिनकी देश के साथ विदेशो में भी है अच्छी मांग आइये बात करेंगे आज तरबूज की खेती की संपूर्ण जानकारी –
तरबूज की खेती के बारे में जानकारी –
उत्तरी भारत के कई राज्यों में इसकी भरमार पैदावार ली जाती है | यह फसल हल्की भूमि और अच्छी तरह से तैयार भूमि में अच्छी पैदावार देती है, अच्छी कमाई देने के कारण कई प्रगतिशील किसान इस खेती में अपनी रूचि दिखा रहे है |
मिटटी और जलवायु –
रेतीली और बलुई मृदा, पीली मिट्टी, काली मटियार मृदा सही मानी जाती है, pH मान की बात करें तो 6.5-7 pH मान वाली मृदा में अच्छा उत्पादन दे सकती है| मौसम और जलवायु में बीज बुवाई/पौध जमने के समय हल्की ठंडी चाहिए लेकिन बाकि फसल मुख्यत गर्म जलवायु में फलती-फूलती है यह फसल 18 से 40 डिग्री तापमान सहन कर सकती है |
तरबूज की खेती का समय –
उन्नत समय की माने तो यह मुख्यत: जनवरी से मार्च के बीच बुवाई की जा सकती है |
तरबूज की अगेती खेती | सामान्य समय | तरबूज की पछेती खेती |
अगेती खेती में किसान जनवरी के शुरुआत से जनवरी के लास्ट सप्ताह तक बुवाई का काम पूरा कर सकते है | | सबसे बढिया और उतम समय फरवरी माह माना जाता है | | पछेती बुवाई मार्च के शुरुआत से लेकर 25 मार्च तक कर लेनी चाहिए | |
तरबूज की उन्नत किस्में/वेराइटी ?
उन्नत किस्में | विवरण |
पूसा बेदाना | यह किस्म भी काफी किसानो की पहली पसंद की किस्म है इस किस्म के तरबूज फलों में बीज नहीं होते है यह तरबूज अच्छी मार्केटिंग, स्वादिष्ट एवं मीठे, गुदा का रंग गुलाबी होता है इसकी फसल 80-95 दिन में पककर तैयार हो जाती है | |
डब्ल्यू 19 | यह तरबूज मीडियम आकर की बनावट लेता है, इसके बहारी सहत पर गहरी हरी धारिया होती है इसके फल उच्च गुणवत्ता एवं मीठे होते है| फसल 75 से 80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है शुष्क और अधिक तापमान वाले क्षेत्रो में इस वैरायटी को ज्यादा लगाया जाता है इसकी बुवाई फरवरी मार्च में कर सकते है | |
काशी पितांबर | यह वैरायटी विशेष प्रकार की इसलिए है की इसके छिलके पीले रंग और अंदर से गुदा गुलाबी रंग का होता है उत्पादन क्षमता कम मानी जाती है अन्य किस्मों की तुलना में – 150 क्विंटल के आस-पास | |
अलका आकाश | यह एक हाइब्रिड किस्म का बीज है इस तरबूज किस्म का फल अंडाकार एवं गुदा गुलाबी होता है उपज इस वैरायटी की अच्छी मानी जाती है | |
दुर्गापुर मीठा | इस वैरायटी का तरबूज आकार में बड़ा होता है, जिसका अधिकतम वजन 10 किलोग्राम तक भी हो सकता है, बाहरी आवरण गहरे हरे रंग का होता है खाने में स्वादिष्ट और मीठा होता है | |
सुगर बेबी | मार्केटिंग के तौर पर इस वैरायटी के तरबूज की खेती अच्छे से की जा सकती है इसके हर फल का वजन 2 से 5 किलोग्राम में होता है खाने में स्वादि और गुदा गहरा लाल होता है 80 से 90 दिन में पकने वाला यह किस्म जिसकी लगभग उपज 400 से 450 क्विंटल/हेक्टेयर तक ली जाती है | |
न्यू हेम्पशायर मिडगट | यह तरबूज की एक काफी उन्नत किस्म है, जिसके फलों का अधिकतम भार 20 किलोग्राम तक देखा जा सकता है छिलका गहरा लाल और गुदा मिश्री लाल में बनता है | |
अर्को मानिक | यह किस्म फसल में लगने वाले रोगों के प्रति काफी सहनशील मानी जाती है | इस वैरायटी की भण्डारण एवं परिवहन क्षमता अच्छी है बाजार में इसकी अच्छी मांग रहती है, 6 किलोग्राम के औसत भार में यह फल देती है इसकी अधिकतम पैदावार 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है जो 100 से 110 दिन में पककर तैयार होती है | |
आशायी यामातो | यह तरबूज की जापानी वैरायटी है, मांग कम होने के कारण इसकी बुवाई देश में कम की जा रही है | |
तरबूज की खेती करने का तरीका/विधि –
देश के कई राज्यों में इसकी खेती करने की अलग-अलग विधियों से करते है, सबसे पहले किसान को खेत की 2 बार हल या कल्टीवेटर से गहरी जुताई करा देनी है उसके बाद रोटावेटर की मदद से मिटटी को समतल करा लेनी है | तैयार समतल खेत में बेड या धोरा विधि या समतल तरीके में पौध/बीज की रोपाई कर सकते है |
बेड या धोरा विधि | बुवाई के इस तरीके में बेड से बेड के बीच की दुरी 4 से 6 फिट रख सकते है | मल्चिंग पेपर 20 माइक्रोन का लगा सकते है, बेड पर बिज्से बीज की दुरी 2 से 3 फिट की रख सकते है | सिंचाई में ड्रिप सिस्टम की मदद से सम्भव होता है | – इस विधि में प्रति एकड़ 4000 से 5000 पौधो की जरूरत पड़ती है | |
समतल तरीके में पौध/बीज की रोपाई | इस प्रकार से बवाई सबसे आसान और इसे पुराना तरीका माना जाता है बीजो को छिडकाव या समान दुरी पर रोपाई या फिर नर्सरी से तैयार पौधो को भी लगा सकते है सिंचाई के साधनों में ज्यादातर फवारा सिस्टम काम में लेना पड़ता है | – पौध/बीज की रोपाई तरीके से 200 से 250 ग्राम/एकड़ बीज की आवश्यकता पड़ती है | |
सिंचाई और खाद-उर्वरक ?
खाद-उर्वरक | सिंचाई |
– खेत तैयारी के समय 20 टन पक्की हुई गोबर खाद +50 kg DAP खाद + 100 kg सिंगल सुपर फास्फेट पावडर डालना है | – पौध लगाने के बाद 4 से 5 द्रिंचिग/भिगोना करना बहुत जरूरत होती है जिसमे NPK 19-19-19 / KG का 400 लिटर पानी में डालकर/एकड़ की दर से कर सकते है | | – पौधे लगाने से लेकर फसल 15 दिन की हो जाये उस समय में 4-5 द्रिंचिग/भिगोना विधि से प्रति पौधा 100 मिली लिटर जड़ में देना जरूरी है | – सामान्य सिंचाई सप्ताह में 3 बार करनी उचित मानी जाती है | |
तरबूज की खेती से उत्पादन ?
बुवाई से लगभग 80 से 90 दिन बाद तरबूज तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है, अच्छी वैरायटी और देखभाल से तैयार तरबूज की फसल से लगभग 150 क्विंटल से 350 क्विंटल/हेक्टेयर तक का उत्पादन ले सकते है |
तरबूज की खेती में लागत ?
नई तकनीक यानी ड्रिप इरिगेशन तरीको से तरबूज की खेती तैयार करते है तो किसान को लगभग 60 हजार से 75 हजार तक का प्रति एकड़ खर्चा आ जाता है, जिसमे नर्सरी पौध, मिल्चिंग पेपर, खेत की तैयारी, निराई-गुड़ाई, लेबर खर्चा, खाद-दवा आदि शामिल है |
तरबूज की खेती से कमाई ?
बाजार और मंडियों में तरबूज का रेट 1000 से 1500 रूपए प्रति क्विंटल के भावों में बिक जाता है इस प्रकार 80-90 दिन की फसल से 150000 से 300000 रूपये/हेक्टेयर की कमाई कर सकते है |
तरबूज की खेती किस महीने में होती है?
यह मुख्यत जनवरी से 25 मार्च के बीच बुवाई की जा सकती है और अगेती खेती से तैयार फसल बाजार में अप्रेल के मध्य दिनों में आना शुरू हो जाती है |
तरबूज की खेती कहां होती है?
तरबूज की खेती व्यापारिक स्तर पर देश में प्रमुख मैदानी क्षेत्र के अलावा – राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, गुजरात जैसे राज्य में अच्छी पैदावार ली जाती है साथ ही आजकल किसान ताइवान किस्म के तरबूज की खेती भी करके अच्छी रेट में विदेशो में निर्यात कर रहे है |
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