[ नील की खेती कैसे होती है 2024 ] जानिए भारत में नील कहां उगाया जाता है, नील का पौधा, उपयोग, मांग | Indigo Farming in India

Last Updated on January 1, 2024 by krishisahara

यह पौधा भारत में ऐतिहासिक रूप से रंग की दुनियां में विदेशी निर्यात के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन आजकल रंग के उत्पादन में अनेक प्रकार कि तकनीकों के विकास के कारण इसका महत्व कम हो गया है | आज के समय सीमित एवं बड़ी संस्था-कम्पनियों द्वारा अनुबंध खेती में इसकी खेती देखने को मिलती है | आइये जानते है, नील की खेती कैसे होती है

नील-की-खेती-कैसे-होती-है

नील क्या होता है ?

“नील का पौधा” वास्तव में नील की उत्पत्ति करने वाले पौधे का बोटैनिकल नाम है, जिसे इंग्लिश में “Indigo Plant” कहा जाता है | यह एक ऐसा पौधा होता है, जिसके पत्तों और फूलों से नील के रंग को प्राप्त किया जाता है |

नील का पौधा, रंग के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है, जिसका उपयोग रंगभराई, वस्त्रों, और अन्य विभिन्न उद्योगों में किया जाता है | इसकी पत्तियाँ और फूल नीली रंग की पिगमेंट इंडिगो को उत्पन्न करने के लिए प्रमुख स्रोत होते है |

नील की खेती उचित परिस्थतियों, देखभाल, और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है क्योंकि यह एक विशेष प्रकार की पौधों की खेती होती है, जिसमें उचित समय पर देखभाल और प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है |

भारत में नील की मांग क्यों थी?

भारत में नील की मांग का मुख्य कारण वस्त्रों और विदेशों में उद्योगों के लिए रंग की आवश्यकता थी | नील एक प्राचीन रंग था, जिसका उपयोग वस्त्रों, कपड़ों, और अन्य सामग्रियों को रंगने के लिए किया जाता था |

यह रंग वस्त्रों को नीला या गहरे नीले रंग में रंगने का क्षमता देता था, जिससे वे आकर्षक और विशिष्ट दिखते थे |

नील के उपयोग से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु –

  • राजा-महाराजों और अमीर वर्ग के लोग अक्सर नीले वस्त्र पहनते थे, जो उनकी सोशल स्थिति और स्थान को दर्शाते थे |
  • नीली रंग को धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में भी प्रयुक्त किया जाता था, जैसे कि शादियों, उत्सवों, और धार्मिक अवसरों पर |
  • पुराने समय में भारत में नील का व्यापार एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक गतिविधि था, जिससे व्यापारिक रिश्तों की नेटवर्क बनी और व्यापारिक संबंध विकसित हुए |
  • उद्योग और शिल्पकला आधारित विभिन्न उद्योगों में भी उपयोग किया जाता था, जैसे कि तण्डु सुरंग (अनुधारक) के बनाने में और कला-कार्यों में |

नील का पौधा कैसे होता है?

नील का पौधा, जिसे इंग्लिश में “Indigo Plant” कहा जाता है, एक छोटे से गूदेदार वृक्षक पौधे की तरह होता है | यह पौधा आमतौर पर 1-2 मीटर ऊँचा होता है और इसके पत्तियाँ हरे रंग की होती है | यह पौधा भारत के विभिन्न क्षेत्रों ब्रिटिश सरकार द्वारा जबरदस्ती तरीके से उगवाया जाता था, आज भी भारत के कई राज्यों में डिमांड के आधार पर खेती कर उगाया जाता है |

भारत में नील की खेती कहां होती है ?

भारत में नील की खेती प्रमुख रूप से नीलगिरि पर्वत श्रेणी के क्षेत्रों, जैसे कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में की जाती है | यहाँ पर्वतीय क्षेत्रों में नील की उपज का समृद्ध विकास होता है जो नीलगिरि पर्वत श्रेणी की खासियत है |

इन राज्यों में, नील की खेती गर्मियों में प्रमुख रूप से की जाती है, क्योंकि यहाँ पर्वतीय जलवायु उपयुक्त होती है जो नील पौधों के विकास के लिए उपयुक्त होती है | तमिलनाडु के तिरुनेलवेली, कर्नाटक के शिमोगा, केरला के कोजिकोड, आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम, आदि जिलों में नील की खेती आमतौर पर की जाती है |

नील की खेती कैसे होती है ?

नील की खेती एक सावधानीपूर्ण और विशेष तकनीक से होती है | यह विशेष प्रकार की पौधों की खेती होती है जिसमें सही समय पर देखभाल, प्रसंस्करण, और सावधानी की आवश्यकता होती है | नील की खेती के विभिन्न चरण होते है –

  • इसकी खेती में सर्वप्रथम बीजों को बोया जाता है | बीजों को पहले से जल से भिगोकर उन्हें नर्सरी जैसी मिट्टी में बोना जाता है | इसके बाद पौधों की देखभाल की जाती है, ताकि वे अच्छे से उग सकें।
  • उगे हुए पौधों की देखभाल करने के लिए उन्हें आवश्यक खाद, सिंचाई, और मौसम जलवायु अनुकूल रखना चाहिए |
  • पत्तियाँ और फूलों की देखभाल से नील पिगमेंट की उचित मात्रा प्राप्त होती है |
  • पत्तियों और फूलों से पिगमेंट प्राप्त करने के लिए नील पौधों को कट दिया जाता है | इस पिगमेंट को निकालने के लिए विशेष तकनीकों की आवश्यकता होती है |
  • रंग का उत्पादन हेतु पिगमेंट को साफ करके उसे उचित रूप में प्रसंस्कृत किया जाता है |

यदि आप नील की खेती को आवश्यकतानुसार देखभाल करेंगे और सही तकनीकों का पालन करेंगे, तो आप उचित मात्रा में और उच्च गुणवत्ता वाले नील पिगमेंट का उत्पादन कर सकते है |

जलवायु-मिटटी ?

नील की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी के लिए नील पौधों को उच्च तापमान की आवश्यकता होती है, जो उनके सही विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है | अच्छी आर्द्रता नील पौधों के विकास के लिए आवश्यक होती है, क्योंकि ये पौधे पानी को प्राप्त करने के लिए अधिक जरूरत होते हैं | नील पौधों के लिए पीएच 6-7 मान वाली मिट्टी होनी चाहिए, जिसमें लाल दोमट, काली, पहाड़ी, अच्छी जलनिकास युक्त ड्रेनेज मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है |

नील की खेती के मुख्य तरीका कौन से है (खेत की तैयारी, बुवाई)?

नील की खेती मुख्य रूप से दो तरीकों से की जाती है – बुवाई (बीज बोना) और तण्डु सुरंग के माध्यम से किया जाता है |

बीज बुवाई विधि – इस तरीके में बीजों को उचित मिट्टी में बोना जाता है, फसल में सिंचाई, खाद-उर्वरता, पौधों में किट-रोग, स्वस्था की देखभाल की जाती है, ताकि वे अच्छे से विकसित हो सकें | इस तरीके में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह बीजों के सही समय पर उगने और विकसित होने का सुनिश्चित करने में मदद करता है |

तण्डु सुरंग (अनुधारक) – इस तरीके में, नील के पौधों को पूर्व-विकसित अवस्था में काट लिया जाता है और इन पौधों को तण्डु सुरंग में डालकर पानी में रखा जाता है | पौधों के भीतर से आने वाले इंडिगो पिगमेंट को पानी में ले जाने की प्रक्रिया को अनुधारण करने के बाद, उन्हें सूखाने के लिए बाहर रखा जाता है और इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है | इस तरीके से प्राप्त नीली पिगमेंट को प्रसंस्कृत किया जाता है और इसे रंग के उत्पादन में उपयोग किया जाता है |

नील की खेती के लिए दोनों तरीके महत्वपूर्ण होते है और यह निर्धारित किस्म के मिट्टी, उपयुक्त जलवायु, और उचित तकनीकों की आवश्यकता होती है |

भारत में नील की खेती की शुरुआत कहाँ हुई?

भारत में नील की खेती की शुरुआत प्राचीनकाल में हुई थी | नील की खेती का इतिहास भारत के साथ-साथ बहुत पुराना है और यह पौधा भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से ही पाया जाता है |

वेदों, पुराणों, और प्राचीन साहित्य में नील के पौधों के प्रयोग का उल्लेख होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इसका उपयोग भारत में हजारों वर्षों से किया जा रहा है | नील की खेती के प्राचीन उदाहरणों में भारतीय संस्कृति, वस्त्रों के उद्योग, धार्मिक आयोजनों में इसका उपयोग, और व्यापारिक गतिविधियों में नील की महत्वपूर्ण भूमिका थी |

आज के समय नील की खेती की मांग ?

आज के समय तेजी से बढ़ते जीवन शैली के कारण केमिकल, एवं रसायन तकनीकों का विकास हुआ है, पिछले 3-4 दशकों से नील रंग की मांग में काफी कमी आई है | आज भी विशेष उधोगों, संस्थाओ की मांग के आधार पर बहुत कम रकबे में नील की खेती की जाती है |

नील से क्या-क्या बनता है?

नील से एक विशिष्ट प्रकार के पिगमेंट को प्राप्त किया जाता है जिसे “इंडिगो” कहा जाता है | इसका व्यापारिक उपयोग वस्त्रों, कागज़, लेखनी किताबों, पिशाच, पुराने मानचित्रों, फिल्टर पेपर, रंगीन ग्लास, टेक्सटाइल उत्पादों, रेगिस्तानी गहनों, और अन्य विभिन्न उद्योगों में किया जाता है |

नील कौन सा पौधा पैदा करता है?

नील का पौधा “Indigofera tinctoria” नामक पौधा पैदा करता है | यह एक 1 से 2 मीटर ऊंचाई का छोटा पेड़ होता है, नील पौधे की पत्तियों और डांटियों, फूलों से अद्वितीय प्रकार के पिगमेंट को प्राप्त किया जाता है, जिसे इंडिगो कहा जाता है |

भारत में नील कहां उगाया जाता है?

भारत में नील की खेती प्रमुख रूप से दक्षिण भारत में होती है, विशेष रूप से तमिलनाडु, केरला, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में | यहाँ पर्वतीय क्षेत्रों में नील की उपज का समृद्ध विकास होता है, जो नीलगिरि पर्वत श्रेणी की खासियत है | दक्षिण भारत के प्रमुख जिले तिरुनेलवेली, कोजिकोड, शिमोगा, और विशाखापत्तनम, नील की खेती की जाती है |

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