[ हर्बल खेती कैसे की जाती है 2024 ] जानिए हर्बल उद्योग, औषधीय पौधों की खेती कैसे करें | Herbal Farming

Last Updated on October 20, 2024 by krishisahara

हर्बल खेती क्या है | herbal kheti kaise kare | herbal kheti kya hoti hai | हर्बल खेती किसे कहते हैं | हर्बल प्लांट्स की खेती

बढती जनसख्यां और घटते प्राकतिक साधन आज के समय जल्दी से बढ़ रहा है | प्राक्रतिक साधनों की मांग के पीछे आज के समय औश्दिय और जड़ी-बूटी वाले पेड-पौधो की मांग के साथ उद्योग-धंधे का रूप लेता जा रहा है | औषधिय पौधो में मुख्यत नीम, तुलसी, ब्राम्ही/बेंग साग, हल्दी, सदाबहार, हडजोरा, करीपत्ता, दूधिया घास, दूब घास, आंवला, पीपल, सरसों, अनार आदि है जो भरपूर गुणों से युक्त है | आइये जानते है हर्बल खेती के बारे में विस्तृत से –

हर्बल-खेती-क्या-है

हर्बल खेती क्या है ?

जड़ी-बूटी और ओषधिय पौधों की व्यवसायिक स्तर पर खेती करना हर्बल खेती के नाम से जाना जाता है| हर्बल उत्पादों की माँग के कारण ही देश में कई उधोग विकसित हुए है और किसानों ने औषधीय पौधों और सुगंधित पौधों की खेती बड़े तौर पर करने लगे है | औषधिय मांग वाली निकटम जगह सामान्य खेती के मुकाबले जड़ी बुटियों की खेती में 10 गुना अधिक मुनाफा कमा सकते है |

औषधीय पौधों की खेती कैसे करें ?

हर्बल खेती करने के लिए सबसे पहले खेत या मिट्टी को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए | इस खेती में जैविक या गोबर युक्त खाद का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए | जड़ी बूटियों की खेती करने के लिए जड़ी बूटियों को उगाना आसान होता है, उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत नही होती है| थोड़ी धूप, पानी, अच्छी मिट्टी और उर्रवरक की जरूरत होती है, जो अच्छी मात्रा में समय-समय पर मिलती रहे |

हर्बल खेती का महत्व –

हमारे शरीर और त्वचा को बिना साइड प्रभाव डाले, निरोगी बनाये रखने में औषधीय पौधों का महत्व बढ़ रहा है | भारतीय पुराणों, प्रमाणिक ग्रंथों में इसके उपयोग के अनेक साक्ष्य मिलते हैं | इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से आज के समय आयुर्वेद दवा के साथ-साथ अग्रेजी दवाइयों में हर्बल खेती की मांग है |

हर्बल खेती, औषधि फसलें कौन-कौन सी हैं?

नीम –

नीम का पेड़ ठंडी छायादार और कई उपयोगी जो स्वाद में कड़वा होता है | इसकी एक टहनी में करीब 9-12 पत्ते और अधितम उंचाई 20 मीटर तक की होती है| इसके फल, फूल, पत्ते, टहनिया, छिलके, जड़े, रस-पानी, बड़ी लकड़ी आदि सब अपने-अपने महत्व के कारण उपयोगी है |

तुलसी –

तुलसी एक झाड़ीनुमा पौधा है इस पौधे के फूल, पत्ती, टहनिया, बीज, जड़े आदि घरेलू और दवा के रूप में काम में लिया जाता है | हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यह एक पवित्र पौधा है, जिसकी हर एक घर-आगन में रोजाना पूजा-पाठ शुभ माना जाता है |

हल्दी –

स्वास्थ्य की द्रष्टि से यह बूटी शरीर के लिए काफी ताकतवर साबित है| हल्दी को अलग-अलग प्रकार से तैयार कर त्वचा निखार, सौन्दर्यवर्द्धक, घाव निरोगी, रसोई मसाले, कफ-खासी नाशक आदि प्रकार से काम में लिया जाता है |

सदाबहार-

सदाबहार का पौधा चिकित्सा के क्षेत्र में सर्वोधिक उपयोग होता है | इसकी उंचाई 50 सेंटी मीटर तक और 8-10 टहनियों में बढ़ता है| सालभर इसके फूल सफ़ेद या बैगनी मिश्रित गुलाबी रंग में आते हैं, यह पौधा अधिकतर बगान, बलुआही क्षेत्रो, घेरों के रूप में लगया जाता है | आज के समय कॉस्मेटिक समान व दवाईयों में भरपुर काम में लिया जा रहा है |

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हदजोरा-हड्जोरा –

यह पौधा मुख्य रूप से अंगूर की बैल परिवार का ही पौधा है, जो पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं | यह बूटी हड्डियों को मजबूत और टूटी हुई हड्डियों को तेजी से ठीक करने में भरपूर सहायक मानी जाती है |

करिपत्ता –

दक्षिण भारत में इस पेड़ को अधिक महत्व दिया जाता है, जो ज्यादातर सभी घरों में पाया जाता है| इसका इस्तेमाल मुख्यता भोजन को स्वादिष्ट और सुंगंधित बनाने के लिए किया जाता है| दिखने में यह नीम के पेड के समान होता है |

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एलोवेरा –

आज के समय एलोवेरा के बारे कौन नही जानता, जूस से लेकर जेल, क्रीम, तेल, दवा आदि में काम में लिया जा रहा है| एलोवेरा उत्पाद की बढती मांग के कारण आज कई उधोग-धंधे विकशित हो चुके है |

दूधिया घास –

इसका उपयोग और मांग अब घट गई है, यह अधिकतर हल्की मिटटी वाले खेतो में पाई जाती है, इसकी पत्तियों के बीच छोटे-छोटे फूल होते है |

लेमन ग्रास –

लेमन ग्रास का उपयोग ओषधि चाय/टी बनाने में होता है, इसके अलावा इससे निकलने वाले तेल से नींबू की खुशबू वाले साबुन, हर्बल चाय, डिओरडेंट यानी बदन की दुर्गंध दूर करने वाले पदार्थ और चमड़ा उद्योग में बदबू दूर करने में इस्तेमाल होता है |

भारत में इसकी खेती और मार्केटिंग बढ़ाने के लिए सरकार ने पिछले साल से प्रयास कर रही है जिससे – मध्यप्रदेश, उड़ीसा, छतीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार जैसे राज्यों में इसका रकबा बढ़ा है |

सतावर की खेती –

सतावर का उपयोग कई रोगों के उपचार में जिसमें – त्वचा के रंग में सुधार, स्त्री रोग संबंधी मुद्दों का इलाज, सामान्य दुर्बलता, कमजोरी और प्रतिरक्षा आदि में उपयोगी होती है |

सतावर की खेती के लिए 10 से 15 डिग्री सल्सियस का तापमान, जुलाई से अगस्त में बुवाई, बाजार में सतावर की जड़ो की कीमत 200 से 300 रु/किलो तक होती है |

हर्बल खेती को सरकार का बढ़ावा ?

भारत सरकार ने ओषधि खेती को बढ़ावा देने के लिए नम्बर 2000 में “नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड” की स्थापना की थी | यह बोर्ड ओषधि खेती को बढ़ावा और व्यापार, निर्यात, प्रोसेसिंग, ट्रेनिग/प्रशिक्ष्ण व खेती के विकास से जुड़े काम करता है |

देश में सर्वोधिक हर्बल खेती कहाँ होती है ?

बढती मांग के चलते – मध्यप्रदेश, गुजरात, महारास्ट्र, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड आदि राज्यों में ओषधि खेती अच्छी हो रही हैं| वर्तमान समय, लगभग 80% हर्बल पौधे, प्राकृतिक स्त्रोतों से प्राप्त किये जाते हैं जबकि जंगलो के कट जाने, रिजर्व होने से इसकी बड़ती मांग को पुरा करना काफी मुश्किल हो गया है, ऐसे में अगर किसान हर्बल पौधे की खेती करते है तो अच्छा मुनाफा कमा सकता है |

हर्बल प्लांट्स की खेती से कमाई ?

एक सामान्य किसान यदि प्रशिक्षण लेकर और अच्छी मार्केटिंग के साथ खेती करता है तो, हर्बल खेती से 1 एकड़ में 10 से 25 लाख तक की खेती कर सकता है | आज के समय हर्बल खेती से जुडी-बूटी पौधे-ओषधि का मांग/व्यापार अधिक होता है, जो हर्बल खेती को अधिक बड़ावा देता है | हर साल भारत में ओषधि पौधों का व्यापार लगभग 8 हजार करोड़ रुपये के पार है |

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