Last Updated on February 29, 2024 by krishisahara
रेशम वास्तव में एक प्राकृतिक रेशा है, रेशम के उत्पादन तथा इसकी खेती को सेरीकल्चर कहते है| हमारा भारत देश रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है, रेशम की खेती को अंग्रेजी भाषा में सिल्क फार्मिंग (Silk Farming) कहते है| जागरूक किसान रेशम को प्राकृतिक विधि से तैयार करके लाखों में अच्छी आमदनी कमा सकते है –
रेशम की खेती क्या है ?
रेशम की खेती अन्य फसलों से भिन्न है, रेशम की खेती करने के लिए रेशम के कीटों को पालन करना होता है और रेशम के कीटों के लिए भोजन की व्यवस्था भी करनी पड़ती है | रेशम के किट द्वारा रेशों का निर्माण किया जाता है, जो कीमती दामों में बाजारों में बेचकर आय का साधन बनता है –
शहतूत के पेड़ों बिना आप रेशम किट नही पाल सकते है, शहतूत एक बहुवर्षीय वृक्ष है | शहतूत के पौधे लगाने पर यह 15 वर्षो तक उच्च गुणवक्ता वाली शहतूत की पत्तियां, रेशम किट के भोजन के लिए प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है|
सेरीकल्चर किसे कहते है, सरकारी सहयोग ?
रेशम किट को पालकर रेशम का धागा प्राप्त करने को सेरीकल्चर कहते है | रेशम किट को शहतूत के पौधे की पत्तियों पर पाला है, यह किट शहतूत की पत्तियां को खाकर रेशमी कोमल धागों का निर्माण करता है | रेशम किट, किट वर्ग का प्राणी है, रेशम किट का जन्तु वैज्ञानिक नाम बॉम्बिक्स मोरी है| रेशम किट अपने प्यूपा अवस्था में शरीर के चारो और एक रेशम का धागा बनाता है तथा धागे के बीच में ही बंद हो जाता है, इसे कोया कहते है|
कृषि की उन्नत तकनीकों और जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए, किसान भाई यदि रेशम की खेती करते है, तो आपको इसके लिए सरकार भी 25% से लेकर अधिकतम 50% सब्सिडी देती है|
रेशम की खेती कैसे की जाती है ?
रेशम की खेती करने के लिए आपको 1 एकड़ खेत को तैयार कर लेना है, आधा एकड़ खेत में भी आप रेशम की खेती कर सकते है| शुरुवाती तौर पर कम जमीन पर ही रेशम की खेती करना उचित है, रेशम की खेती के लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज रेशम का भोजन है| रेशम के किट शहतूत की पत्तियां खाकर जीवित रहते है, जिससे वह रेशम का निर्माण करते है| इसीलिए आपको शुरुआत में कम से कम आधा एकड़ में अच्छे से शहतूत के पौधों को लगाकर बागवानी प्रकार की खेती करनी चाहिए|
रेशम के किट द्वारा रेशम का निर्माण किया जाता है, रेशम किट केवल 2 या 3 दिनों तक ही जीवित रहते है और इसके प्रजनन का समय थोड़ा लंबा होता है| मादा रेशम किट अपने अंडो को शहतूत की पत्तियों पर देती है, मादा रेशम किट एक बार में 300 से 400 अंडे देती है|
यह भी पढ़े –
रेशम के कीड़े कहां मिलते हैं?
रेशम के कीड़े आपको शहतूत के बाग में मिलेंगे, यह रेशम के कीड़े को पाला जाता है, जिसे मलबरी सिल्क भी कहते है| यह रेशम का कीड़ा टसर की खेती में और एरी की खेती में भी देखने को मिलता है|
रेशम के कीड़े कौन कौनसे पेड़ पर पाले जाते हैं?
रेशम के कीड़े शहतूत, गुलर और पलाश आदि वृक्ष या पेड़ो पर रेशम के कीड़े पाले जा सकते है| कीड़े पालना, रेशम को साफ करना, सूत बनाना, कपड़ा बनाना आदि कार्य रेशम की खेती में किया जाता है| ग्रामीण क्षेत्र में इस कृषि आय वाले व्यवसाय को आसानी से शुरू किया जा सकता है|
रेशम की खेती के लिए प्रमुख आवश्यकताएं ?
- रेशम की खेती के लिए एक सिंचित भूमि की आवश्यक होती है, जो की आधी या फिर एक एकड़ जमीन होनी चाहिए|
- चयनित भूमि पर आपको शाहतुत के पौधे की उन्नत बागवानी रोपाई कर देनी है|
- इस शहतूत पौधे को विशेष किस्म की मिट्टी तथा जलवायु की जरूरत नही होती है|
- शहतूत के पेड़ की पत्तियां रेशम के कीड़े का मुख्य भोजन होता है, इसलिए पतों की बढ़वार के लिए सिंचाई और बढ़वार पर ध्यान देना चाहिए |
- इस पेड़ से रेशम का भोजन तैयार होता है, इसलिए आपको इसके पेड़ की देखभाल अच्छे करते रहना चाहिए |
- एक अच्छी क्वालिटी के पेड़ों और पत्तों से, रेशम के कीड़े द्वारा रेशमी धागा तैयार होता है|
रेशम के प्रकार ?
रेशम मुख्य रूप से चार प्रकार के होते है, जानकारी नीचे विस्तार से दी गई है –
मलबरी रेशम –
मलबरी रेशम एक सामान्य रेशम का प्रकार है, इसमें प्राकृतिक शाइनिंग के साथ-साथ चिकनापन और कोमलता होती है| जो की खासकर रेशमी कपड़ो और साड़ियों की विशेषता होती है| मलबरी रेशम बोंबिक्स मोरी नामक कीटों से तैयार किया जाता है| भारतीय बाजार में मलबरी रेशम की काफी मांग है, जिसके कारण से इसकी कीमत अधिक है|
अहिंसा रेशम / एरी रेशम –
एरी रेशम की प्राप्ति सामिया रिसिनी तथा फिलोसामिया रिसिन प्रजाति के कीटों से प्राप्त होता है| यह किट असमान तथा अनियमित कोष बुनते है, इस रेशम के कोकुनो को कीटों के उड़ने के बाद प्रयोग में लाया जाता है तथा इस रेशम का संबंध सीधे अरंडी के पत्ते से होता है| एरी रेशम से बने वस्त्रों का उपयोग शीत ऋतु में सर्वाधिक किया जाता है|
टसर रेशम –
टसर रेशम का उत्पादन मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और बंगलादेश में किया जाता है, टसर रेशम को अंग्रेजी में वाइल्ड सिल्क कहते है| इस रेशम को साधारण भाषा में कोसा और वन्या सिल्क भी कहते है| यह रेशम जीनस एंथेरिया नामक किट से प्राप्त होता है, यह किट वृक्ष की पत्तियां खाते है|
यह भी पढ़े –
मूंगा रेशम –
मूंगा रेशम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी मांग है, जिसके कारण से यह अधिक महंगा मिलता है| यह रेशम रेशम मुख्य रूप से उत्तर पूर्वी में पाया जाता है| मूंगा रेशम एंथेरे आसमेंसिस नामक कीटों से प्राप्त होता है, मूंगा रेशम का रंग हरा और पीला होता है तथा इस रेशम का उल्लेख रामायण और प्राचीन ग्रंथो में किया गया है|
भारत में रेशम का उत्पादन ?
भारत में शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्यतः कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल और आदि दक्षिणी राज्यों में होता है| रेशम के सर्वाधिक उत्पादन में भारत द्वितीय स्थान पर है, विश्व में भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता है| कर्नाटक अकेला राज्य हर साल लगभग 8,200 मेट्रिक टन रेशमी धागा का उत्पादन करता है |
आज के समय रेशम कीट का महत्व ?
बाजार में बढ़ती क्वालिटी वाली वस्तुओ की मांग ने रेशम के उत्पादों की कीमतों को बढ़ाया है | आज के समय अच्छी कमाई के जरिए से किसान भाई इन दुर्लभ और आय वाली खेती की और बढ़ रहे है | रेशम कीटों से अच्छा उत्पादन लेने के लिए कृषि की कई उन्नत तकनीकों को अपनाकर, रेशम उत्पादन को बढ़ा रहे है |
रेशम का कीड़ा की प्रमुख देखरेख ?
- रेशम की खेती के लिए आपको केवल रेशम कीटों की आवश्यकता होती है, आपको रेशम के कीटों की देख-रेख करने की आवश्यकता होती है|
- इसकी देख रेख में आपको केवल रेशम के किट के लिए भोजन की व्यवस्था करनी होगी|
- ध्यान रखे शाहतुत वृक्ष पर आपको किसी प्रकार केमिकल का छिड़काव नही करना चाहिए |
रेशम कीट पालन में लागत कमाई ?
रेशम की खेती बहुत ही लाभदायक कृषि व्यवसायों में से एक है, इससे आप शुरुआती एक एकड़ की लागत के बाद सालाना 5 लाख रुपए से अधिक लाभ उठा सकते है| यदि हम रेशम की खेती से लागत और कमाई की बात करें तो, रेशम किट पालन में लगभग 2 लाख रुपए की लागत आती है और इससे उन्हें सालाना पांच लाख रुपए की आमदनी होती है| यदि हम एक औसत लाभ देखे तो आपको सालाना 3 लाख रुपए का मुनाफा हो सकता है|
भारत में रेशम उत्पादक राज्य कौन से है?
भारत में रेशम उत्पादक राज्यों में सर्वोधिक कर्नाटक और इसके अलावा पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि प्रदेशों में देखा जाता है|
रेशम के कीड़े की उम्र कितनी होती है?
रेशम के कीड़े की उम्र 2 से 3 दिनों की होती है, मादा किट करीब 200 से 300 अंडे एक बार में दे सकती है, 10 दिनों में अंडे से लार्वा निकलता है|
रेशम कीट पालन-pdf सम्पूर्ण जानकारी?
रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है, रेशम का उपयोग वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है| रेशम किट पालन करने वाले क्षेत्र का तापमान और हवा की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए| शहतूत के पत्तो की अच्छी गुणावक्ता, नई तकनीकों का इस्तमाल और किट पालन की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए – रेशम कीट पालन-pdf
यह भी जरूर पढ़ें…