Last Updated on February 26, 2024 by krishisahara
अरण्डी की उन्नत किस्में | अरण्डी का भाव | अरण्डी बोने का समय | अरण्डी का पौधा | अरण्डी के बीज का उपयोग | भारत में अरंडी कहां उगाई जाती है | अरण्डी की खेती कैसे करें | अरण्डी की उन्नत खेती कैसे करें | अरंडी के बीज कैसे लगाते हैं
तिलहनी फसलों में जानी-मानी अरण्डी फसल, नगदी फसलों में आती है | इसका तेल बहुत ही उपयोगी एवं औषधीय इंडस्ट्रीज में महत्वपूर्ण माना गया है| अरण्डी का तेल से बहुत से सामान/उत्पाद बनाये जाते है, जैसे कि इसका तेल डाई, डिटर्जेंट, दवाइयां, प्लास्टिक, छपाई की स्याही लिनोलियम फ्लूड, पेंटस लेदर, मरहम, पालिश, फर्श का पेंट लुब्रिकेंट आदि चीजे बनाने के काम आता है | अरंडी की पत्तियों को रेशम का कीड़ा भोजन के रूप में बड़े चाव से खाते है|
देश के अधिकतर हिस्सों में अरंडी की खेती मिश्रित रूप से की जाती है, जिसमें खेत की मेड़ों पर कुछ पौधों को लगा देते है | खेत में अरंडी के पेड़ से फसल को सुरक्षा मिलती है तथा रोग कीट भी नहीं लगते हैं |
देश के किसान अरंडी की खेती कर इसका तेल बेच कर अच्छी-खासी आय प्राप्त कर सकते है | आइए जानते है, अरंडी की उन्नत खेती तथा इसके बाजार भाव, अरंडी की खेती की संपूर्ण जानकारी –
अरंडी की खेती कैसे करें ?
इसकी खेती नगदी फसलों में मानी जाती है, खेती चाहे कैसी भी हो आज के समय जानकारी और बाजार की मांग के अनुसार ही करनी चाहिए| अरण्डी की खेती कर किसान अच्छा उत्पादन और लाभ कमा सकता है |
अरंडी फसल हेतु उपयुक्त जलवायु और भूमि ?
अरण्डी की खेती गर्म व शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है | Arandi ki kheti 50 से 75 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है| अरण्डी सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है, लेकिन सामान रूप से अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट तथा हल्की मटियार भूमि में की जा सकती है | Aarandi ki kheti के लिए मिट्टी का pH मान 5 से 6 माना जाता है |
अरण्डी की उन्नत किस्में ?
अरण्डी की दो प्रकार की प्रजातियां पाई जाती है –
प्रथम संकुल या देशी प्रजातियां – जैसे की टाइप 3, टाइप 4, अरुण, ज्योति, क्रांति, तराई 4, कालपी 6, ज्वाला 48-1, सी.ओ 1 एवं किरन है|
सरे प्रकार की संकर प्रजातियां – जैसे की जी.सी.एच.2, जी.सी.एच.4, जी.सी.एच.5, डी.सी.एच.177, डी.सी.एच.32 एवं डी.एम्.बी.5, डी.एम्.बी.6 है|
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अरंडी की खेती हेतु खेत की तैयारी ?
उन्नत खेती करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत में पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए | मेड़ों के किनारे थाले बनाकर थालों को भुरभुरा करके बीज बुवाई करते है|
यदि किसान मेड पर मिश्रित रूप से Arandi ki kheti करता है, तो गड़े विधि से कर सकता है |
अरडी कब बोई जाती है?
बरसात के मौषम मे वर्षा होने पर 15 जुलाई से 15 अगस्त तक बुवाई की जा सकती है | इसकी बुवाई लाइनों में 90 सेंटीमीटर से एक मीटर की दूरी पर हल के पीछे पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखी जाती है | मेंड़ों के किनारे 60 सेंटीमीटर की दूरी पर थाले बनाकर बुवाई थालों में की जाती है |
अरण्डी की खेती में बीजों की मात्रा ?
अण्डी की बुवाई में संकुल या देशी प्रजातियों का बीज 15 किलोग्राम तथा संकर प्रजातियों का बीज 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए|
अरंडी के पौधे के लिए कौनसा उर्वरक सबसे अच्छा है?
अरण्डी की अच्छी पैदावार लेने हेतु 50 किलोग्राम नत्रजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस तत्व के रूप में तथा राकर व भूड़ भूमि में 15 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता पड़ती है |
नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में निराई-गुड़ाई की समय देना चाहिए|
अरण्डी की फसल में सिंचाई ?
वर्षा ऋतु की फसल होने के फलस्वरूप सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है | पानी न बरसने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए | वैसे गर्मी के समय इसकी फसल मे सिंचाई हर माह करते रहना चाहिए |
अरण्डी का पौधा में कौन-कौन से रोग लगते है ?
धब्बेदार रोग – इसमें पत्तियो का धब्बेदार रोग लगता है| इसकी रोकथाम के लिए 2 किलोग्राम जिंक मैग्नीज कार्बोनेट अथवा 80 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण को 2 किलोग्राम अथवा जीरम 27 प्रतिशत को 3 लीटर का मिश्रण बनाकर छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए |
विल्ट बीमारी – Arandi ki kheti में विल्ट बीमारी भी लगती है | रोकथाम हेतु फसल में पानी नहीं भरना चाहिए | तथा रोगरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए |
कैस्टर सेमीलूपर – अरण्डी में कैस्टर सेमीलूपर लगता है, इसके साथ ही टोबैको कैटरपिलर एवं लीफ हापर भी लगता है| रोकथाम के लिए क्यूनालफास 1.5 लीटर या मिथाइलपैराथियान 2 प्रतिशत को 25 किलोग्राम या डी.डी.वी.पी. 76 प्रतिशत को 50 मिलीलीटर लेकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
अरण्डी की फसल से प्रति हेक्टेयर पैदावार ?
सभी तकनीकों को अपनाते हुए उपज प्रजातियों के आधार पर प्राप्त होती है | जैसे कि संकुल या देशी प्रजातियों में 12 से 14 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है | तथा संकर प्रजातियों में 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है|
अरण्डी का भाव ?
बाजार भाव की बात करें, तो यह भारतीय बाजारो में बिक रही है | इसी और अरण्डी का मंडी भाव में 4000 रुपये प्रति क्विंटल से 7000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बना हुआ है |
अरण्डी को कहाँ बेचे मंडी कहा है ?
किसान अपनी अरंडी की फसल को अपने नजदीकी किसी भी कृषि उपज मंडी में बेच सकता है | यदि किसान इन कम उत्पादित और महंगी औषधीय फसलों को ज्यादा दामों में बेचने के लिए अपने राज्य की शीर्ष जानी-मानी मंडियों में भी जा सकते है |
भारत में अरंडी कहां उगाई जाती है ?
भारत दुनिया का सबसे अधिक अरण्डी पैदा करने वाला देश है| भारत में 7.3 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है, सालाना उत्पादन 8 लाख टन तक लिया जाता है| देश में अरंडी 1094 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादकता है |
भारत में इसका उत्पादन गुजरात, आँध्रप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश में होता है | पूरे भारत का 80% उत्पादन तथा 50% क्षेत्रफल केवल गुजरात में है |
उत्तर प्रदेश में अरण्डी की खेती तराई क्षेत्र के पीलीभीत, खीरी, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, संतकबीरनगर, गोंडा, गोरखपुर तथा बुंदेलखंड क्षेत्र एवं कानपुर, इलाहाबाद व आगरा जनपदो में एकल तथा मिश्रित रूप से की जाती है | इसकी खेती मक्का तथा ज्वार के साथ मेंड़ो पर लाइन में की जाती है, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है|
अरण्डी बोने का समय?
अरंडी की खेती, यह एक खरीफ सीजन की तिलहनी फसल है | इसे बरसात के शुरूआती मानसून मौषम में वर्षा होने पर 15 जुलाई से 15 अगस्त तक बुवाई की जा सकती है|
अरण्डी के बीज का उपयोग ?
इसका उपयोग कई उत्पाद एव घरेलू उपचार हेतु किया जाता है | जैसें – तेल डाई, डिटर्जेंट, दवाइयां, प्लास्टिक, छपाई की स्याही लिनोलियम फ्लूड, पेंटस लेदर, मरहम, पालिश, फर्श का पेंट लुब्रिकेंट आदि चीजे बनाने के काम आता है | – अरंडी मंडी आज का भाव
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