Last Updated on February 20, 2024 by krishisahara
धान में अच्छी पैदावार के लिए क्या डालें | धान में कंडुआ रोग | धान की अधिक पैदावार के उपाय | धान में झुलसा रोग की दवा- धान की पत्ती पीली होना | धान की जड़ में कीड़ा | धान में खैरा रोग लगने की दवा | धान में अधिक कल्ले बढ़ाने की दवा
धान की खेती करने वालों के किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या होती है, कि फसल में लगने वाले रोग, यदि किसान इन रोगों के प्रति समय पर जागरूक/निवारण ना करें तो उपज-उत्पादन और लागत में भारी नुकसान में पहुँच सकता है |
आइए जानते है धान के फसल के प्रमुख कीट-रोग के बारे में जो धान की अच्छी पैदावार को प्रभावित करते है –
धान में झुलसा रोग लक्षण और उसकी दवा –
धान की फसल में यह एक ऐसा रोग है जो रोपाई के 15 दिन के बाद से लेकर धान की फसल पकते समय तक देखा जा सकता है | इस रोग की शुरुआती अवस्था में पौधे की निचली पतियों पर हल्के बैंगनी और सफेद रंग के धब्बे बनते है, जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख के समान पौधे की गाठों में भी इस रोग का असर धीरे-धीरे देखने को मिलता है | धीरे-धीरे वहां से गल कर टूट जाती है, नई पत्तीयो में पीले सूखे धब्बे दिखाई पड़ते है |
झुलसा रोग की दवा –
इस रोग के उपचार के लिए Tebuconazol 25.9% EC/फंगीसाइड को 250 ml प्रति लीटर की दर से प्रति एकड़ 200-250 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव कर देना चाहिए | यदि रोग ज्यादा है या रुका नहीं तो 10-12 दिन बाद वापस छिड़काव करना चाहिए |
धान की पत्ती पीली रोग लक्षण और उसका निवारण ?
धान में यह रोग नर्सरी से लेकर हरी फसल तक देखा जाता है | इस रोग में पत्ते के ऊपरी भाग हल्का पीला होने लगता है, फिर धीरे-धीरे पीलाप्पन लेते हुए पूरा पत्ता पीला होने लग जाता है | रोग ग्रसित पौधे बहुत कमजोर हो जाते है उनमें कल्ले कम निकलते है | इस रोग का प्रकोप पौधों में बहुत ही तेजी से फैलता है जिस से पत्तियां सूख कर मर जाती है | यह रोग प्रमुख रूप से लोहे, कॉपर, सल्फर आदि की कमी के कारण होता है |
धान की पत्ती पीली रोग दवा –
इस रोग की रोकथाम के लिए 6 gm stepto or 300 gm copper Oxychloride 50% WG (Fungicide) प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव कर सकते है | 2 सप्ताह बाद लगे की रोग रुका नहीं तो फिर इसी मात्रा में वापस एक बार छिड़काव कर देना चाहिए |
धान में कंडुआ रोग के लक्षण और उसकी दवा ?
हरदी/कंडुआ रोग में बालियों में तैयार दाने पीले रंग के फफूंद रूप में बदल जाते है, जो बाद में काले पाउडर में बदल जाते है | धान की फसल में इस रोग का आना प्रमुख कारण मौसम में लगातार परिवर्तन है |
जब दाना भरने के दिनों में ही इस रोग का प्रकोप होता है दानों पर पीले रंग की मखमली फफूंद जैसे लक्षण दिखाई देते है| धान की बाली को हिलाने पर हल्दी जैसा पाउडर उड़ने लगता है और बाद में दानों में काला राख जैसा पाउडर भर जाता है | यह एक बहुत ही गंभीर रोग है जो पूरी तैयार फसल को खराब कर देता है |
कण्डुआ रोगी पौधों में इस रोग का प्रकोप होने पर इसका इलाज संभव नहीं है, लेकिन बाकी फसल में आप इसमें दवा का प्रयोग कर सकते है |
कंडुआ रोग दवा –
बाली निकलने से एक या 2 सप्ताह पहले इस दवा का छिड़काव करें | कॉपर ऑक्साइड 50% WP (फंगीसाइड) 350 ग्राम प्रति एकड़, टीका के तौर पर 200 किलो पानी में घोलकर स्प्रे/छिड़काव करें | बाली निकलने के बाद Propiconazol 25% EC 300 मिली लीटर प्रति एकड़ 180 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें | इस प्रकार दोनों दवाओं का छिड़काव कर हरदी/कंडुआ रोग की रोकथाम हो सकती है |
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धान में भूरी चित्ती रोग –
धान में यह रोग भी लगभग पूरे देश में हर क्षेत्र में देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित वाली फसल में शुरुआत में तिल के आकार के भूरे धब्बे होते है, फिर बाद में 2 से 3 सप्ताह में पूरी फसल में फैलने लगते है और पूरी फसल को रोगी बना देता है |
भूरी चित्ती दवा –
इस रोग के रोकथाम के लिए शुरुआती दिनों में लक्षण दिखाई देते ही – कार्बेंडाजिम 50% WP (फंगीसाइड) 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से फसल में 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए |
धान में खैरा रोग के लक्षण और उसकी दवा ?
- खैरा रोग जिंक की कमी के चलते फैलता है |
- इस रोग में फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती है बाद में कत्थई रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते है |
- धान का पौधा छोटा रह जाता है और कल्लों का फुटाव भी कम होता है |
खैरा रोग की दवा –
इस रोग की रोकथाम के लिए जिंक सल्फेट 33 प्रतिशत 5 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया में मिलाकर फसल में छिड़काव दे सकते है |
धान की अधिक पैदावार के उपाय ?
- धान की नर्सरी गुणवतापूर्ण और देखरेख में तैयार होनी चाहिए |
- अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत की अच्छी जुताई बुआई करनी चाहिए |
- धान की अच्छी पैदावार और कीट-रोग से बचाने के लिए सतर्क और देखभाल करते रहना चाहिए |
- धूप के समय खेत में ज्यादा समय तक पानी का जमाव ना होने दे, इससे कई बीमारिया और फसल रोगी होने लगती है |
- धान की फसल में ज्यादा रासायनिक दवाइयों का प्रयोग न करें |
- धान की रोपाई लाइन में करनी चाहिए, जिससे खरपतवार कम आती है और इसका निवारण भी आसानी से किया जा सकता है |
धान की फसल के रोंगों की सम्पूर्ण जानकारी के लिए – Vikaspedia
धान में झुलसा रोग की दवा?
Tebuconazol 25.9% EC/ फंगीसाइड को 250 ml प्रति लीटर की दर से प्रति एकड़ 200-250 लीटर पानी मे मिलकर कर देना चाहिए | यदि रोग ज्यादा है या रुका नहीं तो 10-12 दिन बाद वापस छिड़काव करना चाहिए |
धान में कौन-कौन से रोग होते हैं?
धान की फसल के प्रमुख रोग – कंडुआ रोग, भूरी चित्ती रोग, झुलसा रोग, धान की पत्ती पीली होना, धान की जड़ में कीड़ा, खैरा रोग आदि प्रमुख रोग है जिनसे किसान और फसल प्रभावित होते है |
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